Friday 21 December 2012

फूलों की घाटी में






फूलों की घाटी में बजता
कानफोड़ सन्नाटा.

बीच-बीच में यहाँ-वहाँ से
उभर डूबती चीखें
डस लेती लिप्सा की नागिन
जो पराग पल दीखें

आदमकद आकाश का
होता जाता नाटा.

नदियों-झीलों-झरनों में जा
डूब मरीं मुस्कानें
शोक-धुनों में बदल रही हैं
उत्सव- धर्मी तानें

संतूरी सम्मोहन टूटा
चुभता बनकर काँटा.

17 comments:

  1. gaagar men saar... saras samyik geet hetu nadhaee.

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    1. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
      आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँ” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच <a href=" पर भी होगी!
      सादर...!
      शशि पुरवार

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    2. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
      आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
      सादर...!
      शशि पुरवार

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    3. हार्दिक धन्यवाद, आ. संजीव वर्मा "सलिल" जी. (divyanarmada.blogspot.in)

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    4. हार्दिक धन्यवाद, आ. शशि पुरवार जी.

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  2. बहुत सुमधुर कर्ण प्रिय गीत ,बधाई

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    1. हार्दिक धन्यवाद, आ. मंजुल जी.

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  3. समसामयिक सच्चाई को बयां करता नवगीत..आपको बधाई आ शशीकांत जी..

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    1. हार्दिक धन्यवाद, आ. परमेश्वर फुंकवाल जी.

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  4. बहुत ही सुन्दर, समसामयिक और सार्थक गीत,
    बधाई शशिकांत गीते जी।

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    1. हार्दिक धन्यवाद, आ. सुरेन्द्रपाल वैद्य जी.

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  5. अच्छा गीत है वधाई शशिकान्त गीते जी

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    1. हार्दिक धन्यवाद, आ. जगदीश व्योम जी.

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  6. बहुत ही सुन्दर गीत है ....आज के हालात को कलात्मक शब्दों से बुना है

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    1. हार्दिक धन्यवाद, आ. संध्या सिंह जी.

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  7. .
    अति सुन्दर.

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  8. हार्दिक धन्यवाद, आ. वीरेश अरोडा़ जी.

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