Tuesday 16 July 2013

समय को नाथ!



नाथ!
समय को नाथ!

रस्सी छोडे़
सरपट घोडे़
बदल रहे हैं
पाथ.

कीला टूटा
पहिया छूटा
नहीं
कैकयी साथ.

जीत कठिन है
बडा़ जिन्न है
झुका न ऐसे
माथ.

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर नवगीत रचा है आपने!

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  2. आदरणीय श्री रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी, नमन/ आभार. स्नेह बनाए रखें.

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  3. बहुत सुन्दर नव गीत का सृजन किया है ...

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