Tuesday 16 May 2023

एक मछली सिरफिरी



नदी से उछली, उछलकर

गर्म रेती पर गिरी

एक मछली सिरफिरी।


अब तड़पती है चमकते

जाल में आकर फँसी            

देह अंतर चीर जाती

धूप मछुआरिन हँसी

एक ग्रंथित दुष्ट मौसम

की  व्यवस्था में घिरी।

एक मछली सिरफिरी।


आँख से ओझल नदी, गुम

हुए संकेत सारे

स्मरण भर शेष मीठे कल

हुए हैं आज खारे

स्वप्न नीले, हाट- बाटों

आँख- आँखों किरकिरी।

एक मछली सिरफिरी।

Monday 13 April 2020

गूलर के फूल




कथित रामप्यारे ने देखे
सपने में गूलर के फूल।

स्वर्ण महल में पाया खुद को
रेशम के वस्त्रों में लकदक
रत्नजड़ित झूले पर झूलें
बीबी- बच्चे उजले झक
दुख- दर्दों के पर्वत सारे
नष्ट हो गये हैं सहमूल।

देशी और विदेशी व्यंजन
ढेरों फल, रोटी- तरकारी
दूध- दही की नदियाँ आँगन
दरवज्जे मोटर सरकारी
कदम- कदम पर अफसर नौकर
जबरन सेवा में मशगूल।

इसी बीच बच्चे रोये तो
सुंदर- सुंदर सपना टूटा
भीतर- बाहर वैसा ही था
जैसा अर्धरात में छूटा
गुदड़ी में उग आये ढेरों
पोर- पोर में चुभे बबूल।

खुद देखें या लोग दिखायें
सपने तो केवल सपने हैं
संसद में भी बुने गये जो
कागज- पत्तर ही छपने हैं
सोच- समझकर मिल को निकला
उत्तर दिशि में थूकी भूल।

Saturday 31 August 2013

मुझे जीने दो



चाहता हूँ और जीना
मुझे जीने दो.

हो रहा है मन अनामय
जाग उठ्ठी जोत सोती
क्या हुआ पत्थर बने
जो झोलियों में भरे मोती
फटी, मैली, धुली चादर
मुझे सीने दो.

हूँ बहुत रसहीन
होने दो मुझे गहरा, विशद
ध्यान मत तोडो़, समाधित
गुनगुनाने दो सबद
रिस रहा है अमिय घट से
मुझे पीने दो.

Tuesday 16 July 2013

समय को नाथ!



नाथ!
समय को नाथ!

रस्सी छोडे़
सरपट घोडे़
बदल रहे हैं
पाथ.

कीला टूटा
पहिया छूटा
नहीं
कैकयी साथ.

जीत कठिन है
बडा़ जिन्न है
झुका न ऐसे
माथ.

Sunday 23 December 2012

जादू-कथा





भैया रे! ओ भैया रे!
है दुनिया जादू-मंतर की.

पार समुंदर का जादूगर
मीठा मंतर मारे
पड़े चाँदनी काली, होते
मीठे सोते खारे
बढ़ी-बढ़ी जाती गहराई
उथली धरती, खंतर की.

अपनी खाते-पीते ऐसा
करे टोटका-टोना
कौर हाथ से छूटे, मिट्टी
होता सारा सोना
एक खोखले भय से दुर्गत
ठाँय लुकुम हर अंतर की.

उर्वर धरती पर तामस है
बीज तमेसर बोये
अहं-ब्रह्म दुर्गंधित कालिख
दूध-नदी में धोये
दिग्-दिगन्त अनुगूँजें हैं मन
काले-काले कंतर की.

पाँच पहाड़ी, पाँच पींजरे
हर पिंजरे में सुग्गा
रक्त समय का पीते
लेते हैं बारूदी चुग्गा
इनकी उमर, उमर जादूगर
जादू-कथा निरन्तर की.

Saturday 22 December 2012

लोक अपना






आग पानी में
लगाने का इरादा
क्या हुआ.

वे तने मुठ्ठी कसे थे
हाथ सारे
तालियों तब्दील कैसे हो गए
जलती मशालों से उछलते
हौंसले भी
राजपथ की रोशनी में खो गए
और रोशनदान से
गुपचुप अंधेरा
है चुआ.

चट्टान- से संकल्प कल्पित
बर्फ वाले ढेंकुले- से
हैं अचानक गल बहे
और शिखरों पार से आती
हवाओं के भरोसे
ध्वज बिना फहरे रहे
लोक अपना
स्वप्न बनकर
रह गया फिर अनछुआ.


Friday 21 December 2012

ओ मेरे मन





ओ मेरे मन!
सागर से मन!
हिरना मत बन.

नेह नदी ढूँढे
दो बूँदें ही भारी
रेतीले रिश्तों की
छवियाँ रतनारी
उकसाए प्यास
रचे, पाँव-पाँव
कोरी भटकन.

मरूथल में तूने जो
दूब- बीज बोए
बादल से, खोने का
रोना मत रोए
हर युग में
श्रम से आबाद हुए
ऊसर, निर्जन.

-         शशिकांत गीते