चाहता हूँ और जीना
मुझे जीने दो.
हो रहा है मन अनामय
जाग उठ्ठी जोत सोती
क्या हुआ पत्थर बने
जो झोलियों में भरे
मोती
फटी, मैली, धुली
चादर
मुझे सीने दो.
हूँ बहुत रसहीन
होने दो मुझे गहरा,
विशद
ध्यान मत तोडो़,
समाधित
गुनगुनाने दो सबद
रिस रहा है अमिय घट
से
मुझे पीने दो.
बहुत खूब ...शब्दों की जादूगिरी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद, Anju (Anu) Chaudhary जी.
Deletebahut sundar navgeet geete ji waah , gahari baat ko kya sundar piroya hai aapne hardik badhai aapko .
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद, shashi purwar जी.
Deleteसुन्दर नवगीत ...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद, VIRESH ARORA जी.
Deleteजीवन को अपने अर्थों तक ले जाने की जिद है इस सुन्दर गीत में. बधाई आ गीते जी.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद भाई परमेश्वर फुंकवाल जी.
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