Monday, 13 April 2020

गूलर के फूल




कथित रामप्यारे ने देखे
सपने में गूलर के फूल।

स्वर्ण महल में पाया खुद को
रेशम के वस्त्रों में लकदक
रत्नजड़ित झूले पर झूलें
बीबी- बच्चे उजले झक
दुख- दर्दों के पर्वत सारे
नष्ट हो गये हैं सहमूल।

देशी और विदेशी व्यंजन
ढेरों फल, रोटी- तरकारी
दूध- दही की नदियाँ आँगन
दरवज्जे मोटर सरकारी
कदम- कदम पर अफसर नौकर
जबरन सेवा में मशगूल।

इसी बीच बच्चे रोये तो
सुंदर- सुंदर सपना टूटा
भीतर- बाहर वैसा ही था
जैसा अर्धरात में छूटा
गुदड़ी में उग आये ढेरों
पोर- पोर में चुभे बबूल।

खुद देखें या लोग दिखायें
सपने तो केवल सपने हैं
संसद में भी बुने गये जो
कागज- पत्तर ही छपने हैं
सोच- समझकर मिल को निकला
उत्तर दिशि में थूकी भूल।