Saturday, 31 August 2013

मुझे जीने दो



चाहता हूँ और जीना
मुझे जीने दो.

हो रहा है मन अनामय
जाग उठ्ठी जोत सोती
क्या हुआ पत्थर बने
जो झोलियों में भरे मोती
फटी, मैली, धुली चादर
मुझे सीने दो.

हूँ बहुत रसहीन
होने दो मुझे गहरा, विशद
ध्यान मत तोडो़, समाधित
गुनगुनाने दो सबद
रिस रहा है अमिय घट से
मुझे पीने दो.

Tuesday, 16 July 2013

समय को नाथ!



नाथ!
समय को नाथ!

रस्सी छोडे़
सरपट घोडे़
बदल रहे हैं
पाथ.

कीला टूटा
पहिया छूटा
नहीं
कैकयी साथ.

जीत कठिन है
बडा़ जिन्न है
झुका न ऐसे
माथ.