किस से शिकायत गूंगा,
बहरा और अपाहिज काजी.
हमने अपने छोटे- छोटे
खेतों धूप-चाँदनी बोई
जरा नजर चूकी, अधकचरी
फसलें काट ले गया कोई
शंकित नजरों के उत्तर अब
शब्द चीखते वाजी! वाजी!
कुछ रोटी, कुछ सुविधा के भ्रम
उजलों ने राशन पर बाँटे
सरेआम ठेकेदारों ने
प्रजातंत्र को मारे चाँटे
एक नपुंसक चुप्पी कहती
मियाँ और बीबी हैं राजी.
- शशिकांत गीते
No comments:
Post a Comment